अहिल्याबाई होल्कर: मंदिर निर्माण से लेकर जनकल्याण तक, सेवा और धर्म की मिसाल बनी महारानी

अहिल्याबाई होल्कर, मराठा साम्राज्य की प्रतिष्ठित रानी, भारतीय संस्कृति, धर्म और समाज सेवा की अमिट प्रतीक बन चुकी हैं। उन्होंने 18वीं शताब्दी में न सिर्फ सैकड़ों मंदिरों का निर्माण करवाया, बल्कि धर्मशालाएँ, कुएँ, बावड़ियाँ और भोजनालय बनवाकर जनसेवा को नया आयाम दिया।
ऐतिहासिक मंदिर निर्माण कार्य
अहिल्याबाई ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। इसके साथ ही त्र्यम्बकेश्वर (नासिक) में पत्थर का तालाब और मंदिर, गया में राम-जानकी-लक्ष्मण मंदिर, पुष्कर, आलमपुर (भिंड) और हरिद्वार जैसे पवित्र स्थानों पर भी उन्होंने धर्मिक संरचनाएँ बनवाईं।
काशी में उन्होंने मणिकर्णिका घाट और नया घाट का निर्माण करवाया। साथ ही, विश्वनाथ मंदिर और दंड पाणीश्वर मंदिर के शिखर की स्थापत्य कला को नया स्वरूप दिया। उनके कार्य केवल धर्म तक सीमित नहीं रहे; उन्होंने हरिद्वार में श्रद्धालुओं के लिए विश्राम गृह, और गंगोत्री में आधा दर्जन धर्मशालाएँ बनवाकर यात्रियों के लिए सुविधाएँ उपलब्ध कराईं।
सेवा की समर्पित भावना
वृन्दावन में अहिल्याबाई ने 57 सीढ़ियों वाली पत्थर की बावड़ी और एक भोजनालय बनवाया जो आज भी श्रद्धालुओं को भोजन प्रदान करता है। देवप्रयाग और केदारनाथ धाम में भी उन्होंने धर्मशालाएँ बनवाकर लोगों के रहने और खाने की व्यवस्था की।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने कोलकाता से काशी तक श्रद्धालुओं के लिए सड़क और पुलों का निर्माण भी करवाया। यह पहल न केवल तीर्थ यात्रा को सहज बनाती थी, बल्कि सामाजिक समरसता को भी बढ़ावा देती थी।
मध्यप्रदेश में नर्मदा तट का विकास
अहिल्याबाई ने महेश्वर को अपनी राजधानी बनाया क्योंकि यह पवित्र नर्मदा नदी के किनारे स्थित था। यहां उन्होंने अहिल्येश्वर मंदिर, सदावर्त, धर्मशालाएँ और भोजनालय बनवाए। मांडू, मंडलेश्वर, सुलपेश्वर और हडिया जैसे स्थानों पर भी उन्होंने धार्मिक और सामाजिक संरचनाएँ तैयार कीं।
कल्याण के विविध आयाम
उन्होंने न केवल स्थायी संरचनाएँ बनवाईं, बल्कि ग्रीष्म में प्याऊ, शीत में कम्बल वितरण, पशु-पक्षियों के लिए चारा और दाना, और चिड़ियों के लिए खेतों में अन्न छोड़ने जैसे काम भी किए। इससे उनका वात्सल्य और करुणा का भाव झलकता है।