
CJI Khanna on Waqf Protest : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार से एक अहम सवाल पूछा है। अदालत ने पूछा कि क्या अब मुसलमानों को हिन्दू धार्मिक ट्रस्टों में शामिल होने की अनुमति दी जाएगी? यह सवाल वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान उठाया गया। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार और के वी विश्वनाथन की बेंच ने इस अधिनियम पर कई सवाल उठाए। विशेष रूप से, बेंच ने ‘वक्फ बाय यूजर’ की प्रथा पर सवाल किया। ‘वक्फ बाय यूजर’ का मतलब है कि अगर कोई संपत्ति लंबे समय से धार्मिक या धर्मार्थ कार्यों के लिए इस्तेमाल हो रही है, तो उसे वक्फ माना जाएगा, भले ही उसके कोई औपचारिक कागजात न हों।
आज सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या हुआ
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग है जो वक्फ अधिनियम द्वारा शासित नहीं होना चाहता। पीठ ने तब मेहता से पूछा, “क्या आप यह कह रहे हैं कि अब से आप मुसलमानों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्डों का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे। इसे खुलकर कहें।”
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जब 100 या 200 साल पहले किसी सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ घोषित किया जाता है, तो उसे अचानक वक्फ बोर्ड द्वारा अपने अधीन नहीं लिया जा सकता और अन्यथा घोषित नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा- “आप अतीत को फिर से नहीं लिख सकते।”
- मेहता ने कहा कि संसद के दोनों सदनों द्वारा इसे पारित करने से पहले एक संयुक्त संसदीय समिति ने 38 बैठकें कीं और 98.2 लाख ज्ञापनों की जांच की।
- सीजेआई खन्ना ने यह भी कहा कि एक उच्च न्यायालय को याचिकाओं से निपटने के लिए कहा जा सकता है। “दो पहलू हैं जिन्हें हम दोनों पक्षों से संबोधित करने के लिए कहना चाहते हैं। सबसे पहले, क्या हमें इसे उच्च न्यायालय को सौंपना चाहिए या विचार करना चाहिए? दूसरा, संक्षेप में बताएं कि आप वास्तव में क्या आग्रह कर रहे हैं और क्या तर्क देना चाहते हैं?” हम यह नहीं कह रहे हैं कि कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने और फैसला करने में सुप्रीम कोर्ट पर कोई रोक है।”
- याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वक्फ संशोधन अधिनियम का हवाला दिया और कहा कि वह उस प्रावधान को चुनौती दे रहे हैं, जिसमें कहा गया है कि केवल मुसलमान ही वक्फ बना सकते हैं। सिब्बल ने पूछा, “राज्य कैसे तय कर सकता है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं और इसलिए वक्फ बनाने के योग्य हूं या नहीं?” उन्होंने कहा, “सरकार कैसे कह सकती है कि केवल वे लोग ही वक्फ बना सकते हैं जो पिछले पांच सालों से इस्लाम का पालन कर रहे हैं?”
- कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि वक्फ अधिनियम का पूरे भारत में प्रभाव होगा और याचिकाओं को उच्च न्यायालय में नहीं भेजा जाना चाहिए।
- वक्फ अधिनियम का विरोध कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ इस्लाम की एक स्थापित प्रथा है और इसे खत्म नहीं किया जा सकता।
सेल डीड कहां से दिखाएंगे
सीजेआई ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए ये भी कहा कि हम इस मामले को सुनवाई के लिए हाई कोर्ट के पास भी भेज सकते हैं। इससे हमें ये फायदा होगा कि जब केस हमारे पास आएगा तो हमारे पास हाई कोर्ट का भी एक जजमेंट होगा। उन्होंने कहा- अंग्रेजी शासन काल से पहले वक्फ रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था नहीं की गई थी। कई मस्जिदें 13वीं से लेकर 15वीं शताब्दी तक बनाई गईं। अब आप चाहते हैं कि वो आपको सेल डीड दिखाएं, ऐसा संभव नहीं है, वे आपको ये कहां से दिखाएंगे। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून के खिलाफ याचिकाओं पर तीन जजों की बेंच सुनवाई कर रही है। जिसमें चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन शामिल हैं। सरकार का पक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता रख रहे हैं।
कपिल सिब्बल के सरकार से सवाल
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि केवल मुसलमानों को वक्फ बनाने की अनुमति देने का प्रावधान असंवैधानिक है। सिब्बल ने पूछा, ‘राज्य यह कैसे तय कर सकती है कि मैं मुस्लिम हूं या नहीं और इसलिए, वक्फ बनाने के योग्य हूं?’ उन्होंने आगे कहा, ‘सरकार यह कैसे कह सकती है कि केवल वही लोग वक्फ बना सकते हैं जो पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे हैं?’
वक्फ संशोधन विधेयक हो चुका है नोटिफाई
केंद्र ने हाल ही में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को अधिसूचित किया, जिसे 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई। दोनों सदनों में गरमागरम बहस के बाद संसद से इसे पारित किया गया। विधेयक को राज्यसभा में 128 सदस्यों ने पक्ष में और 95 ने विरोध में मतदान करके पारित किया। इसे लोकसभा ने मंजूरी दे दी, जिसमें 288 सदस्यों ने इसका समर्थन किया और 232 ने इसका विरोध किया।
विरोध में 72 याचिकाएं
एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), जमीयत उलमा-ए-हिंद, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके), कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद सहित लगभग 72 याचिकाएं अधिनियम की वैधता को चुनौती देते हुए दायर की गई हैं। केंद्र ने 8 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय में एक कैविएट दायर की और मामले में कोई भी आदेश पारित करने से पहले सुनवाई की मांग की। किसी पक्ष द्वारा उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में कैविएट दायर की जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसका पक्ष सुने बिना कोई आदेश पारित न किया जाए।