Kanhaiya Lal Case : 49 साल बाद अदालत का फैसला, बुजुर्ग ने कोर्ट में कबूला जुर्म, ₹900 का जुर्माना लगाकर किया गया रिहा

Kanhaiya Lal Case : उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में न्याय का एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने देश की विलंबित न्याय प्रणाली और मानवीय संवेदनाओं को झकझोर कर रख दिया है। टहरौली थाना क्षेत्र के बमनुआ गांव स्थित LSS सहकारी समिति में साल 1976 में हुई ₹150 की चोरी के मामले में अब जाकर 2025 में फैसला आया है।
इस लंबे मुकदमे का सबसे भावुक मोड़ तब आया जब मुख्य आरोपी कन्हैयालाल, जो अब 75 वर्ष के हो चुके हैं, कोर्ट में खड़े होकर बोले:
“अब न शरीर साथ दे रहा है, न ताकत बची है… मैं जुर्म स्वीकार करता हूं।”
क्या था पूरा मामला क्या था?
साल 1976 में सहकारी समिति के सचिव बिहारीलाल गौतम ने तीन कर्मचारियों—कन्हैयालाल, लक्ष्मी प्रसाद और रघुनाथ—पर चोरी और फर्जीवाड़े का आरोप लगाया।
- चोरी में एक घड़ी और कुछ रसीदें गायब थीं, जिसकी कीमत ₹150 बताई गई थी।
- जांच में सामने आया कि ₹14,472 की फर्जी वसूली भी की गई थी।
- मामला धोखाधड़ी और कूटरचना की धाराओं में दर्ज हुआ।
49 साल लंबी न्याय यात्रा
- 1984 में चार्जशीट दाखिल हुई।
- आरोपी कन्हैयालाल को गिरफ्तार किया गया और कुछ समय जेल में बिताने के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया।
- इसके बाद शुरू हुआ तारीखों का सिलसिला जो लगभग 5 दशकों तक चला।
तारीख नहीं छोड़ी
बुजुर्ग हो चुके कन्हैयालाल ने एक भी पेशी मिस नहीं की।
- ट्रॉली से अदालत पहुंचते रहे।
- स्वास्थ्य खराब होने पर भी पेश हुए।
- 2023 में आरोप तय हुए, लेकिन फैसला 2025 में आया।
कोर्ट का फैसला
- कोर्ट ने कन्हैयालाल को दोषी करार दिया, लेकिन
- जेल में बिताए समय को ही सजा मानते हुए तत्काल रिहा कर दिया गया।
- साथ ही ₹900 का जुर्माना भी लगाया गया।
यह मामला भले ही ₹150 की चोरी का था, लेकिन यह न्याय, धैर्य और मानवता का बड़ा उदाहरण बन गया है।
जहां एक ओर यह देश की न्यायिक प्रणाली की धीमी गति को उजागर करता है, वहीं दूसरी ओर यह भी दर्शाता है कि
“न्याय में देर हो सकती है, लेकिन इंकार नहीं।”