1200 सालों से अडिग केदारनाथ मंदिर: विज्ञान भी नहीं सुलझा सका रहस्य, बाढ़ में भी रहा सुरक्षित

केदारनाथ मंदिर: एक रहस्य जो विज्ञान की समझ से भी परे है
भारत के उत्तराखंड राज्य की गोद में स्थित केदारनाथ मंदिर, सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि एक अद्भुत वास्तुशिल्पीय चमत्कार भी है। यह मंदिर अपने आप में एक ऐसा रहस्य है जिसे आज तक विज्ञान भी पूरी तरह नहीं सुलझा पाया है।

इतिहास और निर्माण को लेकर अनेक मत
केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया, इसे लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं। कुछ इसे पांडवों से जोड़ते हैं, तो कुछ इसके निर्माता के रूप में आदिगुरु शंकराचार्य को मानते हैं। वहीं, आधुनिक विज्ञान का अनुमान है कि यह मंदिर संभवतः 8वीं सदी में बना था। चाहे निर्माण की सही तारीख कुछ भी हो, यह निर्विवाद है कि यह मंदिर कम से कम 1200 वर्षों से अस्तित्व में है।

कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में अद्भुत निर्माण
केदारनाथ मंदिर की भौगोलिक स्थिति को देखें तो यह कल्पना करना भी कठिन है कि ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में इतना विशाल और मजबूत मंदिर कैसे बनाया गया होगा। ठंड के मौसम में जहां चारों ओर बर्फ जमी होती है और बारिश के मौसम में तेज़ बहाव वाली नदियां उग्र हो उठती हैं, वहां आज भी सड़क मार्ग से सीधे मंदिर तक पहुंचना आसान नहीं है।

केदारनाथ मंदिर की अद्भुत निर्माण तकनीक
मंदिर को “एशलर” तकनीक से निर्मित किया गया है, जिसमें विशाल पत्थरों को बिना सीमेंट या किसी जोड़ने वाले पदार्थ के एक-दूसरे पर सटीकता से रखा गया है। यह तकनीक आज भी इंजीनियरों को हैरान करती है क्योंकि इस तकनीक से बना मंदिर हजारों साल बाद भी बिना किसी क्षति के खड़ा है।

प्राकृतिक आपदाएं भी नहीं कर सकीं नुकसान
2013 की भीषण बाढ़, जिसमें 5700 से अधिक लोग मारे गए और हजारों गांव नष्ट हो गए, के दौरान भी केदारनाथ मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। भारतीय पुरातत्व सोसायटी और IIT मद्रास द्वारा किए गए अध्ययनों में यह स्पष्ट किया गया कि मंदिर की संरचना लगभग 99% सुरक्षित थी। यही नहीं, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के अनुसार, मंदिर 14वीं से 17वीं सदी तक बर्फ में दबा रहा, फिर भी इसकी संरचना पर कोई असर नहीं पड़ा।

मंदिर की दिशा ने भी निभाई अहम भूमिका
जहां अधिकांश भारतीय मंदिर पूर्व-पश्चिम दिशा में बने होते हैं, वहीं केदारनाथ मंदिर उत्तर-दक्षिण दिशा में बना है। विशेषज्ञों का मानना है कि यही दिशा उसे 2013 की आपदा से बचाने में सहायक रही। यदि मंदिर पारंपरिक दिशा में होता, तो संभवतः बाढ़ में क्षतिग्रस्त हो गया होता।