गंगा स्नान का महत्व: श्रद्धा और निष्कपट भाव से ही मिलता है पुण्य, जानें शिव-पार्वती की यह प्रेरक कथा

धार्मिक डेस्क: गंगा स्नान को हिन्दू धर्म में अत्यंत पावन और पुण्यदायी माना गया है। किंतु केवल जल में डुबकी लगाने से क्या वास्तव में पापों का नाश होता है? भगवान शिव और माता पार्वती की एक दिव्य कथा इस रहस्य को बड़े ही सुंदर और गूढ़ तरीके से स्पष्ट करती है।
गंगा स्नान और पार्वती जी का प्रश्न
एक बार भगवान शिव माता पार्वती के साथ हरिद्वार भ्रमण पर थे। उन्होंने देखा कि सहस्त्रों लोग गंगा में स्नान कर ‘हर हर गंगे’ का जयघोष कर रहे थे, फिर भी उनके चेहरे दुख और कष्ट से भरे थे।
तब पार्वती जी ने पूछा — “हे प्रभु! जब ये लोग गंगा में बार-बार स्नान कर रहे हैं, तब भी इनके पाप क्यों नहीं धुल रहे?”
इस पर शिवजी ने उत्तर दिया — “गंगा में वही सामर्थ्य है, किंतु इन लोगों ने वास्तव में स्नान ही नहीं किया है।”
दूसरे दिन शिव जी की लीला
दूसरे दिन जोरदार बारिश हुई। गलियों में कीचड़ भर गया। शिवजी ने वृद्ध का रूप धारण कर एक गड्ढे में गिरने का नाटक रचा। उन्होंने पार्वती जी को समझाया कि आने-जाने वालों से कहो कि कोई “निष्पाप व्यक्ति ही इन्हें छुये, अन्यथा भस्म हो जाएगा।”
पार्वती जी वही करने लगीं। दिन भर गंगा स्नान कर लौटते लोग आते रहे, मगर कोई भी उन्हें छूने का साहस नहीं कर पाया। सभी ने अपने भीतर झांका और माना कि गंगा स्नान के बाद भी वे पाप से मुक्त नहीं हैं।
एक युवक की श्रद्धा और निष्कपटता
शाम होते-होते एक युवक आया, जिसने अभी गंगा में स्नान किया था। पार्वती जी ने उसे भी वही चेतावनी दी।
युवक ने विश्वासपूर्वक उत्तर दिया —
“माता, अभी-अभी गंगा स्नान करके आया हूं, यदि गंगा में स्नान के बाद भी पाप शेष हो, तो फिर उसका क्या महत्व?”
यह कहकर उसने शिवजी को गड्ढे से बाहर निकाला।
तभी शिव और पार्वती ने अपने दिव्य रूप में प्रकट होकर युवक को दर्शन दिए और कहा — “इन्हीं ने वास्तव में गंगा स्नान किया है। बाकी सब केवल जल में डुबकी लगाकर लौट आए।”
कथा का सार: श्रद्धा और विश्वास से होता है पुण्य अर्जित
यह कथा स्पष्ट करती है कि गंगा में डुबकी लगाना मात्र स्नान नहीं कहलाता। सच्चा स्नान वही है जिसमें श्रद्धा, विनम्रता और पाप से मुक्त होने की ईमानदार इच्छा हो।
गंगा स्नान का महत्व केवल बाह्य शुद्धि में नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता और आत्मचिंतन में निहित है। यही कारण है कि जो गंगा को मां समझकर, श्रद्धा और विनम्रता के साथ उसमें स्नान करता है — वही पुण्यफल का अधिकारी बनता है।