गंगा अवतरण की कथा

गंगा अवतरण की पौराणिक कथा: भगीरथ की तपस्या और शिव की कृपा से धरती पर आया जीवन का स्रोत
भारत की पौराणिक गाथाओं में गंगा का अवतरण एक अत्यंत प्रेरणादायक और दिव्य प्रसंग के रूप में वर्णित है। यह केवल एक नदी का जन्म नहीं, बल्कि मानवता के कल्याण हेतु किए गए असाधारण तप और त्याग की अमर कहानी है।
🔍 अश्व की खोज से प्रारंभ होती है कथा
एक बार महाराज सगर ने एक विशाल यज्ञ आयोजित किया। इस यज्ञ की रक्षा उनके पौत्र अंशुमान कर रहे थे। यज्ञ का अश्व इंद्र द्वारा चुरा लिया गया, जिससे यज्ञ में विघ्न उत्पन्न हुआ। अश्व की खोज में अंशुमान ने सगर की 60,000 प्रजा के साथ संपूर्ण पृथ्वी छान मारी, पर घोड़ा नहीं मिला।
🔥 महर्षि कपिल के तेज से हुआ विनाश
अंततः अश्व की खोज पाताल लोक तक पहुँची। वहाँ उन्होंने देखा कि अश्व महर्षि कपिल के समीप चर रहा है, जो तपस्या में लीन थे। अनजाने में प्रजा ने उन्हें चोर समझकर व्यर्थ में शोर मचाया, जिससे उनकी समाधि भंग हो गई। जैसे ही उन्होंने नेत्र खोले, उनके तेज से सारी प्रजा भस्म हो गई।
🌟 भगीरथ की तपस्या और गंगा का वरदान
इन आत्माओं के उद्धार हेतु महाराज भगीरथ ने वर्षों तक कठोर तप किया। भगवान ब्रह्मा उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें गंगा को पृथ्वी पर लाने का वरदान दिया। परंतु उन्होंने यह भी चेताया कि गंगा की धारा का वेग संभालना केवल भगवान शिव के ही वश में है।
🕉️ शिव की जटाओं में बंधी गंगा
तदनुसार, भगीरथ ने भगवान शिव की आराधना की। उनकी प्रसन्नता से गंगा को ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से छोड़ा, जिसे शिवजी ने अपनी जटाओं में समेट लिया। इससे गंगा बाहर नहीं निकल पाईं, और भगीरथ को पुनः तप करना पड़ा।
🌄 धरती पर गंगा का अवतरण
अंततः भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं से मुक्त किया। गंगा हिमालय से निकलकर कल-कल करती हुई मैदानों की ओर प्रवाहित हुईं। इस प्रकार भगीरथ के प्रयास से गंगा का पवित्र जल पृथ्वी पर पहुँचा।
🙏 गंगा: जीवन और मोक्ष का प्रतीक
गंगा केवल जल की धारा नहीं, बल्कि जीवन, शुद्धि और मुक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं। आज भी गंगा की महिमा भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों तक में गाई जाती है। यह पौराणिक कथा हमें यह सिखाती है कि दृढ़ संकल्प और समर्पण से असंभव भी संभव हो सकता है।