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श्रीकृष्ण और ग्रहों का संबंध

क्यों श्रीकृष्ण के भक्तों को ग्रहों का कोई भय नहीं होता? जानिए पौराणिक आधार और भावार्थ

भारतीय सनातन परंपरा में नवग्रहों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से ये ग्रह हमारे जीवन पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। लेकिन जब बात आती है श्रीकृष्ण भक्तों की, तो पौराणिक मान्यताओं में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि उन्हें किसी भी ग्रह का भय नहीं होना चाहिए। इसका कारण केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि पौराणिक आधारों पर भी है।

समुद्र से उत्पत्ति और पारिवारिक संबंध

सबसे पहले बात करते हैं लक्ष्मी जी की, जो समुद्र मंथन से प्रकट हुईं और भगवान विष्णु की पत्नी बनीं। लक्ष्मी जी के भाई हैं चंद्रमा, क्योंकि वे भी समुद्र से उत्पन्न हुए थे। इस नाते चंद्रमा, भगवान श्रीकृष्ण के साले हुए। जब श्रीकृष्ण और चंद्रमा का ऐसा पारिवारिक संबंध है, तो स्पष्ट है कि चंद्रमा श्रीकृष्ण के भक्तों को कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकते।

बुध और श्रीकृष्ण का पारिवारिक नाता

चंद्रमा के पुत्र हैं बुध। इस नाते बुध भी भगवान श्रीकृष्ण के साले के बेटे यानी उनके रिश्तेदार हुए। इतना ही नहीं, श्रीकृष्ण के सखा और संबंधी भी बुध के फूफाजी ठहरते हैं। जब पारिवारिक संबंध इतने मधुर हों, तो नकारात्मक प्रभाव की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

बृहस्पति और शुक्र: विद्वान और सौम्य ग्रह

बृहस्पति और शुक्र ग्रह वैसे भी सौम्य और ज्ञानवान माने जाते हैं। ये हमेशा धर्म और सद्भाव के पक्षधर हैं। इसलिए, स्वाभाविक है कि वे श्रीकृष्ण के शरणागत व्यक्ति पर कभी भी कुदृष्टि नहीं डालते। वास्तव में, इनका आशीर्वाद ही प्राप्त होता है।

राहु-केतु: चक्र के पराक्रम से भयभीत

राहु और केतु पौराणिक कथाओं के अनुसार तब से भयभीत हैं जब भगवान ने अपने चक्र से उनका संहार किया। आज भी वे श्रीकृष्ण के चक्र के पराक्रम को नहीं भूल पाए हैं। ऐसे में उनके द्वारा भक्तों की ओर टेढ़ी नजर डालने की संभावना शून्य है।

मंगल भी हैं ससुराल वाले!

अब बात करते हैं मंगल ग्रह की, जिन्हें सामान्यतः क्रूर ग्रह माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मंगल, श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा के भाई हैं? इस नाते वे भी साले हुए। अतः वे भी भक्तों का अनिष्ट करने की बजाय, रक्षाकर्ता बन जाते हैं।

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