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1000 वर्षों से अडिग खड़ा है बृहदेश्वर मंदिर: पत्थरों की अद्भुत शिल्पकला का जीता-जागता उदाहरण

डेस्क

बृहदेश्वर मंदिर: 1000 साल पुराना पत्थरों से बना अद्भुत शिव मंदिर

भारत की प्राचीन स्थापत्य कला आज भी दुनिया को चकित करती है। तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित बृहदेश्वर मंदिर इसका जीवंत प्रमाण है। यह मंदिर लगभग 1000 साल पुराना है और इसे सिर्फ पत्थरों को इंटरलॉकिंग तकनीक से जोड़कर बनाया गया है। सबसे खास बात यह है कि इसमें कहीं भी चूने या अन्य किसी बाइंडिंग सामग्री का प्रयोग नहीं हुआ।

भगवान शिव को समर्पित चोल राजवंश की धरोहर

इस मंदिर का निर्माण चोल सम्राट राजा राजा चोल प्रथम ने 1010 ईस्वी में कराया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसकी ऊंचाई लगभग 216 फीट है। जब यह मंदिर बनकर तैयार हुआ, तब यह दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों में से एक था।

पत्थरों से बना संसार का पहला मंदिर

बृहदेश्वर मंदिर को 1.3 लाख टन ग्रेनाइट से बनाया गया है। आश्चर्य की बात यह है कि मंदिर स्थल से 60 किलोमीटर के दायरे में ग्रेनाइट का कोई प्राकृतिक स्रोत नहीं है। कहा जाता है कि इन पत्थरों को लाने के लिए 3000 हाथियों की सहायता ली गई थी।

81 टन का शिखर कैसे स्थापित हुआ?

मंदिर के शिखर पर स्थित कुंभम नामक पत्थर का वजन 81 टन है, जो एक ही शिला से तराशा गया है। इस पत्थर को लगभग 200 फीट की ऊंचाई पर स्थापित करने के लिए 6 किलोमीटर लंबा रैंप बनाया गया था। हाथियों की मदद से इसे खींचकर शिखर तक पहुंचाया गया — जो आज भी इंजीनियरिंग की मिसाल है।

🐂 नंदी मंडप और विशाल शिवलिंग

मंदिर परिसर में स्थित नंदी की प्रतिमा भी अद्वितीय है। इसकी ऊंचाई 13 फीट और लंबाई 16 फीट है तथा इसे भी एक ही चट्टान से काटकर बनाया गया है। गर्भगृह में स्थित शिवलिंग की ऊंचाई 29 फीट है, जो इसे भारत के सबसे बड़े शिवलिंगों में शामिल करता है।

स्थापत्य कला की बेजोड़ मिसाल

बृहदेश्वर मंदिर की दीवारों और मंडपों पर तमिल और संस्कृत में शिलालेख, देवी-देवताओं की मूर्तियाँ और चित्र अंकित हैं। मंदिर चारों ओर से ऊंची दीवारों से घिरा है, जिसे 16वीं शताब्दी में जोड़ा गया था। इसका मुख्य द्वार (गोपुरम) भी लगभग 30 मीटर ऊंचा है।

क्यों करें इस मंदिर के दर्शन?

यदि आप भारतीय संस्कृति और वास्तुकला की महानता को महसूस करना चाहते हैं, तो बृहदेश्वर मंदिर एक बार अवश्य देखें। यह न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारत की ऐतिहासिक विरासत और पुरातात्विक चमत्कार का प्रतीक भी है।

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